लोक स्वास्थ्य परंपराओं और आयुर्वेद का संवर्धन एवं पुनरोद्धार

लोक स्वास्थ्य परंपरा में औशधीय एवं सगंध पौधों द्वारा स्वास्थ्य सेवा पर जागरुकता
  1. 1989 में हरदोई जिले के गोनी गोंडवा गांव से प्रारम्भ करने के उपरान्त लखनऊ तथा उसके आस-पास गैर सरकारी संगठनों, स्कूल, पार्कों, वाणिज्यिक प्रतिश्ठानों, आवासीय परिसरों में 70 से अधिक जड़ी-बूटी उद्यानों तथा नर्सरी की स्थापना की गयी।
  2. अपने परिसर में लोक स्वास्थ्य परंपरा तथा आयुर्वेद, एक्युपंचर तथा होम्योपैथी के आधार पर 1996 में एक धर्माथर््ा औशधालय की स्थापना की तथा इसका और अन्य केन्द्रों और गांवों तक विस्तार किया।
  3. 100 से अधिक धर्मार्थ स्वास्थ्य षिविरों, जागरुकता प्रदर्षनियों और मेलों का आयोजन जिनमें लगभग 25,000 लोगों ने भाग लिया तथा लगभग 1,00,000 से अधिक औशधीय और सगंध पौधों का वितरण किया गया।
  4. समुदाय में लोक स्वास्थ्य परंपरा में औशधीय एवं सगंध पौधों का उपयोग के बारे में जानकारी के स्तर का सर्वेक्षण।
  5. उत्तर भारत में औशधीय एवं सगंध पौधों के उपयोग, स्थिति तथा सम्भावना पर अघ्ययन (रिपोर्ट प्रकाषित)
  6. लोक स्वास्थ्य परंपरा तथा आयुर्वेद पर आधरित हिन्दी तथा अंग्रेजी में स्वास्थ्य षिक्षा संबंधी सामग्री का प्रकाषन व उसके उपयोग को बढावा देना।
  7. औशधीय एवं सगंध पौधे, लोक स्वास्थ्य परंपरा तथा आयुर्वेद पर आधरित राश्ट्ीय तथा अन्र्तराश्ट्ीय स्तर पर संगोश्ठियों, सम्मेलनों, कार्यषालाओं, प्रषिक्षण एवं जागरुकता कार्यक्रमों का बड़ी संख्या में आयोजन।

 

उत्तर भारत में लोक स्वास्थ्य परंपरा को प्रोत्साहन

उत्तर भारत में लोक स्वास्थ्य परंपरा संवर्धन समिति के क्षेत्रीय केन्द्र के रुप में निम्नलिखित कार्यक्रमों का आयोजनः

  1. 1989: लोक स्वास्थ्य परंपरा उवं प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए नीतिगत मुद्दों पर विचार मंथन
  2. 1989: विज्ञान षिक्षा केन्द्र के सहयोग से पारंपरिक चिकित्सकों और उनके षुभचिंतकों का बांदा जिले में क्षेत्रीय सम्मेलन और कालिंजर वन में स्थानीय स्तर पर उपलब्ध औशधीय पौधों की पहचान के लिये जड़ी-बूटी यात्रा।
  3. 1990: जयप्रभाग्राम, गोंण्डा में दीन दयाल षोध संस्थान के सहयोग से पारंपरिक चिकित्सकों का सम्मेलन तथा जड़ी-बूटी यात्रा।
  4. 1990: उदयपुर में जागरण जन विकास समिति के साथ गुणी सम्मेलन तथा जडी-बूटी यात्रा।
  5. सी0सी0आर0ए0एस0 तथा अन्य विषेशज्ञों के सहयोग से फूलों की घाटी और नीलकंठ ग्लेषियर में एक सप्ताह की जड़ी-बूटी यात्रा।
  6. 1991: कानपुर में दुनिया में सबसे बड़ा पीलिया महामारी का सर्वेक्षण तथा पारंपरिक स्वास्थ्य के द्वारा देखभाल के साथ मदद और जागरुकता अभियान।
  7. 1991: पीलिया महामारी के रोकथाम पर विभिन्न विधाओं के विषेशज्ञों के साथ राश्ट्ीय कार्यषाला का आयोजन।
  8. 1992: कांगड़ा - हिमाचल प्रदेष के खुंडियां में ”इरा“ के सहयोग से पारंपरिक चिकित्सक सम्मेलन और जड़ी-बूटी यात्रा।
  9. 1993: सर्वोदय आश्रम, हरदोई में महिला डेयरी परियोजना की महिलाओं के लिए मातृ एवं षिषु स्वास्थ्य की देखभाल में औशधि पौधों के प्रयोग पर प्रषिक्षण षिविर।
  10. 1993-96: उत्तर प्रदेश के प्रौढ़ षिक्षा कार्यक्रमों में स्वंयसेवकों तथा जिला समन्वयकों के लिए लोक स्वास्थ्य परंपरा और औशधीय पौधों के उपयोग पर प्रषिक्षण कार्यक्रम।
  11. 1994, 1995: मानवोदय संस्था के स्वंयसेवकों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं हेतु लखनऊ और सीतापुर जिले में पारंपरिक चिकित्सा और औशधीय पौधों पर काम करने के लिए प्रषिक्षण।
  12. 1995: नेहरु युवा केन्द्र के स्वंयसेवकों तथा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को विकास, इलाहाबाद के माध्यम से पारंपरिक चिकित्सा और औशधीय पौधों पर काम करने के लिए प्रषिक्षण।
  13. 2000 के बाद: 2000 से अधिक किसानों को औशधीय एवं सगंध पौधों की जैविक खेती, प्रमाणन एवं मूल्य वर्धित विपणन में मदद एवं निःषुल्क प्रषिक्षण।
  14. 2002: सर्वोदय आश्रम, बरथरा, षाहजहांपुर के स्वंयसेवकों तथा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को पारंपरिक चिकित्सा एवं औशधीय पौधों पर प्रषिक्षण।
  15. 2003, 2004: लोकभारती के स्वंयसेवकों तथा स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को पारंपरिक चिकित्सा एवं औशधीय पौधों पर प्रषिक्षण।
  16. 2005: लखनऊ और उसके आसपास के जिलों में काम करने के लिए उद्यमिता विकास के युवा उद्यमियों को औशधीय पौधों के प्रसंस्करण पर प्रषिक्षण कार्यक्रम।

 

1991 और हस्तक्षेप की समझ पीलिया महामारी

केन्द्रीय औशधि अनुसंधान संस्थान, राजकीय आयुर्वेद कालेज, संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज, लखनऊ तथा भारतीय प्रतिरक्षा विज्ञान संस्थान, दिल्ली के वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के सहयोग से पीलिया महामारी का एक व्यापक सर्वेक्षण मई-जून 1991 में कानपुर में किया गया जिसमें निवारक और उपचारात्मक सुझावों के साथ सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी जिसमें पीने वाले जल के प्रबंधन के सुधार के सुझाव भी बताये गये कई गणमान्य व्यक्तियों, संगठनों व कंपनियों ने प्रयास को सहयोग दिया व सराहा। कालान्तर में यह पीलिया महामारी पर विष्व का सबसे बडा सवे्र्रक्षण साबित हुआ और "The Lancet" तथा विष्व स्वास्थ्य संगठन की प्रतिश्ठित पत्रिका "The Bulletin of the World Health Organization" प्रकाषित हुआ।

इसी प्रकार की सहायता लखनऊ में पीलिया महामारी पर रोकथाम के लिये प्रदान की गयी तथा उत्तर प्रदेश सरकार के आयुर्वेद विभाग के सहयोग से षहर के विभिन्न क्षेत्रों में संयुक्त क्लीनिक की स्थापना की गयी।